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सास बहु मंदिर नागद उदयपुर SAS BAHU KA MANDIR NAGDA UDAIPUR
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सास बहु मंदिर नागद उदयपुर SAS BAHU KA MANDIR NAGDA UDAIPUR
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सास बहु मंदिर नागद उदयपुर SAS BAHU KA MANDIR NAGDA UDAIPUR |
नमस्कार दोस्तों । आज की पोस्ट में हम आपको सास बहु मंदिर नागद, उदयपुर के बारे में जानकारियां देंगे ।
यदि आप भी सास बहु मंदिर नागद के दर्शन और इसके पर्यटक स्थल की जानकारी लेना चाहते हैं तो हमारे इस पोस्ट को पूरा जरूर देखें ।इसमें हम आपको सास बहु मंदिर का इतिहास, दर्शन का समय और यात्रा से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में बताने वाले है ।
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SAS BAHU KA MANDIR NAGDA UDAIPUR |
राजस्थान के उदयपुर शहर से लगभग 22 किमी दूर नागदा गांव में, सास-बहु मंदिर स्थित है जो देखने में बेहद आकर्षक और ऐतिहासिक धरोहर को समेटे हुए है ।
विकसित शैली और प्रचुर अलंकरण के लिए विख्यात यह मंदिर का निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी में करवाया गया था । इस युग्म वैष्णव मंदिर को सास बहु मंदिर के नाम से जाना जाता है । इस मंदिर का निर्माण धरातल से 6 फिट ऊंचे चबूतरे पर करवाया गया है । मंदिर में प्रवेश के लिए पूर्व में मकरतोरण द्वार स्थित है । पंचायतन शैली में निर्मित मुख्य मंदिर देव देवकुलिकाओं से घिरा है ।
प्रत्येक मंदिर पंचरथ गर्भगृह, अंतराल पार्श्वालिंद युक्त रंगमंडप एवं अर्धमंडप युक्त है । भद्ररथ में ब्रह्मा विष्णु और शिव की प्रतिमाएं हैं जो क्रमशः राम बलराम की मूर्तियों से आच्छादित है ।
मण्डप का बाह्य एवं अंदरूनी भाग, स्तंभ, एवं द्वार प्रचुर मात्रा में अलंकृत है । मुख्य मंदिर के मंडप में स्थित मकरतोरण द्वार मध्यकालीन पश्चिमी भारत के शिल्प की मुख्य विशेषता है ।
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सास बहु मंदिर नागद उदयपुर |
ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार कच्छवाहा राजवंश के राजा महिपाल ने इसे 10 वीं, 11 वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य में बनवाया था । माना जाता है कि महिपाल की रानी भगवान विष्णु की भक्त थी । राजा ने अपनी प्यारी पत्नी के लिए एक मंदिर बनवाया, कुछ समय बाद राजा के पुत्र का विवाह हुआ । राजा के पुत्र की पत्नी यानी उनकी बहु भगवान शिव की पूजा करती थी । तब राजा ने अपनी बहु के लिए उसी स्थान पर भगवान शिव का मंदिर बनवाया था । जिसके कारण इसका इसे सास बहु का मंदिर कहा जाने लगा । इसे सहस्त्रबाहु मंदिर के नाम से भी जाना गया है ।
यह मंदिर एकलिंगजी मंदिर के रास्ते में स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है । सास-बहू मंदिर पांच छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है । मंदिर की दीवारों पर अद्भुत नक्काशी की गई है । लेकिन कई आक्रमणों और समय के प्रभाव के कारण, मंदिर के अधिकतर हिस्सों को खंडहर में बदल हैं ।
देखा जाए तो सास बहू का ये मंदिर अपने समकालीन मंदिरों की तुलना में काफी अच्छी दशा में हैं, फिर भी उचित देखरेख के अभाव में ये खंडहर में तब्दील हो रहा है, मंदिर की दीवारों व मूर्तियों पर कालेपन की परछायीं डालना शुरू कर दी है । राज्य पुरातत्विक विभाग ने इस मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया है ।
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सास बहु मंदिर नागद उदयपुर SAS BAHU KA MANDIR NAGDA UDAIPUR |
यह मंदिर उदयपुर शहर से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर उदयपुर – नाथद्वारा हाइवे पर नागदा गांव से 3 किलोमीटर की दूरी पहाड़ों की गोद में स्थित है ।
सास बहु मंदिर नागदा सुबह 6 बजे से रात के 9 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है ।
तो चलिये वापसी करते हैं, इसी तरह की किसी नई पोस्ट के साथ लौटेंगे । धन्यवाद ।🙏🙏
शाकम्भरी माता मंदिर सांभर झील
शाकम्भरी माता मंदिर सांभर झील
नमस्कार
दोस्तों
यदि आप भी शाकम्भरी माता मंदिर, सांभर के दर्शन करना
चाहते हैं तो हमारे इस लेख को पूरा जरूर पढ़े । जिसमें हम आपको शाकम्भरी
माता मंदिर का इतिहास, दर्शन का समय और यहां की यात्रा से
जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में बताने वाले है –
शाकम्भरी माता का प्राचीन शक्तिपीठ, राजस्थान की सांभर झील के मध्य स्थित है । शाकम्भरी माता सांभर शहर की अधिष्ठात्री देवी है । सांभर एक पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और
पुरातात्विक महत्व का शहर है । सांभर का सदियों पुराना गौरवशाली
इतिहास और सांस्कृतिक विरासत रही है ।
कहा जाता है की चौहान वंश के शासक वासुदेव ने सातवीं
शताब्दी में सांभर झील और सांभर शहर की स्थापना की थी ।
सांभर झील एशिया की सबसे बडी नमक उत्पादक झील है, सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैली इस झील में प्रचुर
मात्रा में नमक का उत्पादन आज भी किया जाता है, आस पास के शहरों में हजारों की संख्या में नमक
की फैक्ट्रियां विद्यमान है, जो यहां के लोगों को रोजगार प्रदान करती है
।
झील के मध्य में, कोरसिना गांव से 5 किलोमीटर की दूरी पर शाकम्भरी
माता का प्राचीन मंदिर स्थित है जो इस क्षेत्र के प्रमुख तीर्थ
स्थल के रूप में विख्यात है । सांभर झील के मध्य जिस पहाड़ी की तलहटी में शाकम्भरी माता का मंदिर मौजूद
है, यह स्थान कुछ वर्षों
पहले तक जंगल की तरह ही था, इस पहाड़ी को “ देवी की बनी “
यानी देवी का जंगल के नाम से जाना जाता था ।
यहां मौजूद शाकम्भरी माता का मंदिर भारत का सबसे प्राचीन मंदिर है, कहा जाता है की यहां मौजूद माताजी की प्रतिमा जमीन फाड़कर बाहर निकली थी ।
कहा जाता है की यहां पर स्थित विशाल जलकुंड का निर्माण, पौराणिक कथाओं के राजा ययाति की दोनों
रानियों देवयानी और शर्मिष्ठा के नाम पर किया गया था ।
शाकम्भरी माता के नामकरण के बारे में कहा जाता हैं कि
एक बार इस क्षेत्र में
भीषण अकाल पड़ा, आम जन भूख से दम तोड़ने लगे, उस समय इसी देवी ने “ शाक “ वनस्पति के रूप
में अंकुरत होकर लोगों की भूख शांत की । उसी समय से इसका नाम शाकम्भरी माता पड़ा । माताजी के नाम पर इस क्षेत्र
शाकम्भरी क्षेत्र कहा जाने लगा, कालांतर में शाकम्भरी
से सांभर कहा जाने लगा ।
सांभर शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर झील के मध्य स्थित माताजी मंदिर में माता के दर्शनों के
लिए वर्षभर लाखों श्रद्धालु आते हैं, नवरात्री में भक्तगण नाचते गाते माता के ध्वज के साथ, शाकम्भरी माता मंदिर दर्शनों
के लिए आते हैं । और यहां भादवा सुदी अष्टमी को
प्रतिवर्ष भव्य मेले का आयोजन किया
जाता है ।
पदयात्रियों और श्रद्धालुओं के
विश्राम के लिए धर्मशालाओं की भी यहां समुचित व्यवस्था है ।
शाकम्भरी माता मंदिर सांभर शहर से मात्र 20 किलोमीटर की
दूरी पर स्थित है । सांभर रेलवे स्टेशन से आप यहां
के लिए सड़क परिवहन का उपयोग कर सकते हैं ।
शाकम्भरी माता मंदिर मंदिर
सुबह 6 बजे से रात के 9 बजे तक दर्शनों के लिए खुला रहता है, सुबह सवा सात और शाम को सवा सात बजे
माताजी की आरती होती है । प्रतिदिन दोपहर को एक से दो बजे के मध्य मंदिर के कपाट बंद रहते है ।
यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए लाखड़िया भैरू दर्शन के
बिना यात्रा अधूरी मानी जाती हैं । शाकम्भरी माता मंदिर से कुछ ही दूरी पर लाखड़िया भैरू का प्राचीन
मंदिर मौजूद हैं ।
यह शाकम्भरी माता का प्रभाव ही है जो यहां आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को आत्मिक और मानसिक शांति का अहसास कराता है ।