राजस्थान के प्रमुख जौहर, साका (Jauhar, Saka in Rajasthan) : राजस्थान के इतिहास में "जौहर तथा साकों" का एक विशिष्ठ स्थान है। यहाँ पर युद्ध में वीर सैनिकों एवं उनकी स्त्रियों ने शत्रु की पराधीनता को स्वीकार करने की बजाए सहर्ष मृत्यु का चुनते हुए जान न्यौछावर की है। जौहर व साका उस स्थिति में किए गए जब शत्रु को घेरा डाले बहुत अधिक दिन हो गए या युद्ध में हार निश्चय हो या शत्रु ने युद्ध में विजय प्राप्त कर ली हो। जौहर की घटनाएँ मुख्यत: राजस्थान में मुगल शासकों के आक्रमण एवं युद्ध में हराने के पश्चात उनके द्वारा लूट-पाट एवं स्त्रियों के शीलभंग के कारण होती थी।
जौहर किसे कहते हैं: युद्ध के बाद महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने तथा अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा करके जलती चिताओं में कूद पड़ती थी। वीरांगना महिलाओं का यह आत्म बलिदान का कृत्य जौहर के नाम इतिहास में जाना जाता है। जौहर कर लेने का कारण युद्ध में हार होने पर शत्रु राजा द्वारा हरण किये जाने का भय होता था।
साका किसे कहते हैं: युद्ध के दौरान जब युद्ध में हार निश्चित हो जाती थी एवं महिलाओं को जौहर की ज्वाला में कूदने का निश्चय करते देख पुरूष केशरिया वस्त्र धारण कर मरने मारने के निश्चय के साथ युद्ध में दुश्मन सेना पर टूट पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करेंगे। इसे साका कहा जाता है।
राजस्थान के प्रमुख जौहर, साका (Jauhar, Saka in Rajasthan)
- चित्तौड़गढ़ के 3 साके
- प्रथम साका: यह सन् 1303 में राणा रतन सिंह के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के समय हुआ था। इसमें रानी पद्मनी सहित स्त्रियों ने जौहर किया था। अलाउद्दीन की महत्वाकांक्षा और राणा रतनसिंह की अनिंद्य सुंदरी रानी पद्मिनी को पाने की लालसा हमले का कारण बनी। चित्तौड़ के दुर्ग में सबसे पहला जौहर चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 हजार रमणियों ने अगस्त 1303 में किया था।
- दूसरा साका: यह 1534 ई. में राणा विक्रमादित्य के शासनकाल में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय हुआ था। इसमें राजमाता हाड़ी (कर्णावती) और दुर्ग की सैकड़ों वीरांगनाओं ने जौहर का अनुष्ठान कर अपने प्राणों की आहुति दी।
- तीसरा साका: यह 1567 में राणा उदयसिंह के शासनकाल में अकबर के आक्रमण के समय हुआ था जिसमें जयमल और पत्ता के नेतृत्व में चित्तौड़ की सेना ने मुगल सेना का जमकर मुकाबला किया और स्त्रियों ने जौहर किया था। यह साका जयमल राठौड़ और फत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के प्रसिद्ध है।
- जैसलमेर के ढाई साके:
- प्रथम साका: यह अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था। इसमें भाटी शासक रावल मूलराज, कुंवर रतनसी सहित अगणित योद्धाओं ने असिधारा तीर्थ में स्नान किया और ललनाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया।
- दूसरा साका: दूसरा साका फिरोज शाह तुगलक के शासन के शुरुआती वर्षों में हुआ। रावल, दूदा, त्रिलोकसी व अन्य भाटी सरदारों और योद्धाओं ने शत्रु सेना से लड़ते हुए वीरगति पाई और दुर्गस्थ वीरांगनाओं ने जौहर किया।
- तृतीय साका (आधा साका): यह घटना 1550 ईस्वी में लूणकरण के शासन काल में कंधार के शासक अमीर अली के आक्रमण के समय हुआ था। तीसरा साका अद्र्ध साका कहलाता है। कारण इसमें वीरों ने केसरिया तो किया लेकिन जौहर नहीं हुआ। अत: इसे आधा साका ही माना जाता हैं। इसलिए जैसलमेर के ढाई साके गिने जाते हैं।
- गागरोण (जालौर) के 2 साके:
- प्रथम साका: 1423 ईस्वी में अचलदास खींची के शासन काल में माण्डू के सुल्तान होशंगशाह के आक्रमण के समय हुआ था। इसमें रानियों व स्त्रियों ने जौहर किया।
- दूसरा साका: गागरोण का दूसरा साका 1444 ईस्वी में हुआ। जब मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी ने विशाल सेना के साथ इस दुर्ग पर आक्रमण किया एवं स्त्रियों ने जौहर किया।
- रणथंभौर का 1 साका: यह सन् 1301 में अलाउद्दीन खिलजी के ऐतिहासिक आक्रमण के समय हुआ था। इसमें हम्मीर देव चौहान विश्वासघात के परिणामस्वरूप वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर किया था। इसे राजस्थान का प्रथम साका माना जाता है।
- जालौर का 1 साका: कान्हड़देव के शासनकाल में 1311-12 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था एवं स्त्रियों ने जौहर किया।
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