बगड़ावत भारत भाग 3 - भगवान देवनारायण जी जन्म कथा भाग 3

भगवान देवनारायण जी जन्म कथा भाग 3

बगड़ावत भारत कथा

बगड़ावत भारत कथा भाग 2 लिंक

कथा के अनुसार सवाई भोज को बाबा रुपनाथ की गुफा से भी काफी सारा धन मिलता है जिनमें एक जयमंगला हाथी, एक सोने का खांडा, बुली घोड़ी, सुरह गाय, सोने का पोरसा, कश्मीरी तम्बू इत्यादि । दुर्लभ चीजें लेकर सवाई भोज घर आ जाते हैं । घर आकर सवाईभोज बाबा रुपनाथ व सोने के पोरसे की सारी घटना अपने भाइयों को बताते हैं और इस अथाह सम्पत्ति का क्या करें ? इस बात पर विचार करते हैं ।

बगड़ावतों में सबसे बड़े भाई तेजाजी बगड़ावत कहते हैं कि हमें इस धन को जमीन में छुपा देना चाहिए और हमेशा की तरह जब अकाल पड़ेगा तब इस धन का उपयोग करेंगे और इस धन को कई गुना बढ़ा लेंगे ।

इस पर सवाई भोज कहते हैं कि भाई आपने तो अपने नाना की तरह ही बणिया बुद्धि का उपयोग कर धन बढ़ाने का सोचा है, हमे इस धन को जन कल्याण के कार्यों में खर्च करना चाहिए और लोगों को खुले हाथ से दान करना चाहिए ।

इसके पश्चात सवाई भोज के कहे अनुसार ही बगड़ावत अपना पशुधन बढ़ाते हैं । सभी भाई अपने लिये घोड़े खरीदते हैं और घोड़ों के लिये सोने के जेवर कच्चे सूत के धागे में पिरोकर बनाते थे, ताकि घोड़े जब दौड़ें तो उनके जेवर टूट कर गिरें और गरीब लोग उन्हें उठाकर अपना परिवार पाल सकें । आज भी ये जेवर कभी-कभी बगड़ावतों के गांवो से मिलते हैं । बगड़ावत उस धन से बहुत सी जमीन खरीदते हैं, और अपने अलग-अलग गांव बसाते हैं ।

सवाई भोज अपने बसाये गांव का नाम गोठां रखते हैं । इसके अलावा बगड़ावत उस धन से काफी धार्मिक और जनहित के काम भी करते हैं, तालाब, बावड़ियां और कुवों का निर्माण करवाते हैं । तामेसर कि बावड़ी उन्ही के द्वारा बनवाई गई थी जिसमें आज भी पानी समाप्त नहीं होता ।

अधिक धन के साथ व्यसन भी आ ही जाते हैं, बगड़ावतों के पास अथाह धन होने से वो शराब खरीदने पर भी बेइंतहा खर्च करते हैं और अपने घोड़ो तक को भी शराब पिलाते हैं ।

बगड़ावतों की दानवीरता के किस्से राण के राव दुर्जनसार तक भी पहुंचते हैं । इस कारण राण का राजा बगड़ावतों को राण में आने का निमंत्रण भेजता है, निमंत्रण मिलने पर सवाई भोज अपने भाइयों के साथ अपने राजा से मिलने जाने की योजना बनाते हैं ।

दूसरे दिन बगड़ावतों को अपने घोड़ो को श्रृंगारते देख साडू खटाणी अपने देवर नियाजी से पूछती है “ देवरजी ! सुबह सुबह कहाँ जाने की तैयारी है ?“

नियाजी उन्हें बताते हैं की हम सभी भाई राण के राव दुर्जनसार के निमंत्रण पर राण जा रहे हैं । श्रृंगार करके बगड़ावत, छोछू भाट के साथ राण की तरफ निकल पड़ते हैं, रास्ते में उन्हें पनिहारियाँ मिलती हैं और बगड़ावतों के रुप रंग को देखकर आपस में चर्चा करने लगती हैं ।

राण में प्रवेश करने से पहले ही बगड़ावतों को एक बाग दिखाई देता है जिसका नाम नौलखा बाग था । वहां रुक कर सभी भाईयों की विश्राम करने की इच्छा होती है ।

यह नौलखा बाग राव दुर्जनसार की जागीर होती है, और बाग का माली इन अनजान राहगीरों को बाग में रुकने से मना कर देता है । तब नियाजी माली को कहते हैं कि पैसे लेकर हमें बैठने दो, लेकिन माली नहीं मानता, जिससे नियांजी को गुस्सा आ जाता है और माली को पीटकर वहां से भगा देते हैं । उसके बाद नौलखा बाग का फाटक तोड़कर उसमें घुस जाते हैं ।

इधर बाग का माली मार खाकर राव दुर्जनसार के पास पहुंचता है और बगड़ावतों की शिकायत करता है ।

इधर बगड़ावतों को नौलखा बाग के पास दो शराब से लबालब भरी हुई झीलों सावन-भादवा का पता चलता हैं । ये शराब की झीलें पातु कलाली की होती है जो दारु बनाने का व्यवसाय करती थी ।

सवाई भोज शराब लाने के लिए नियाजी और छोछू भाट को पातु कलाली के पास भेजते हैं । पातु कलाली के घर के बाहर एक नगाड़ा रखा होता है, जिसे दारु खरीदने वाला बजाकर पातु कलाली को बताता है कि कोई दारु खरीदने के लिये आया है । 

नगाड़ा बजाने का नियम यह था कि जो जितनी बार नगाड़े पर चोट करेगा, वह उतने लाख की दारु पातु से खरीदेगा, इससे अनजान छोछू भाट तो नगाड़े पर चोट पर चोट करें जाता हैं । नगाड़े पर हो रही लगातार चोटों को देख पातु सोचती है कि इतनी दारु खरीदने के लिये आज कौन आया है ? पातु कलाली बाहर आकर देखती है कि दो अनजान घुड़सवार दारु खरीदने आये हैं ।

पातु उन्हें देखकर कहती है कि मेरी दारु मंहगी है । पूरे मेवाड में कहीं नहीं मिलेगी । केसर कस्तूरी से भी अच्छी है यह, तुम नहीं खरीद सकोगे ।

नियाजी अपने घोड़े के सोने के जेवर उतारकर पातु को देते हैं और दारु देने के लिये कहते हैं । पातु सोचती हैं कि ये ठग है जो पीतल के जेवरों को सोने के बताकर उसे मूर्ख बना रहे हैं इसलिए दारु देने से पहले सोने के जेवर सुनार के पास जांचने के लिए भेजती है । सुनार सोने की जांच करता है और बताता है कि जेवर बहुत कीमती है । जेवर की परख हो जाने के बाद पातु नौलखा बाग में बैठाकर बगड़ावतों को दारु देती है ।

इधर माली की शिकायत सुनकर रावजी अपने सेनापति नीमदेवजी को नौलखा बाग में भेजते हैं । रास्ते में उन्हें नियाजी मिलते हैं और अपना परिचय देते हैं । 

नियाजी से मिलकर नीमदेवजी वापिस राव दुर्जनसार के पास जाकर कहते हैं कि ये तो बाघजी के बेटे बगड़ावत हैं । रावजी कहते हैं कि फिर तो वे अपने ही भाई है । रावजी बगड़ावतों से मिलने नौलखा बाग में जाते हैं और सवाई भोज को अपना धर्म भाई बना लेते हैं । सभी बगड़ावतों को बड़े आदर के साथ नौलखा बाग में ठहराते है और पातू कलाली से दारू मंगवाते है और सवाई भोज को दारू पीने की मनुहार करते है । तब सवाई भोज ये शर्त रखते है कि अगर पातू मेरे इस बीडे को दारू से पूरा भर देगी तो मैं पी सकता हूँ । यह सुनकर पातु शर्त के लिये तैयार हो जाती है और सवाई भोज के पास जाती है और अपनी सारी दारु सवाई भोज की हथेली में रखे बीडे में उडेलती है । पातु की सारी दारु खतम हो जाती है, उसकी दोनों दारु की झीलें सावन-भादवा भी खाली हो जाती है, मगर सवाई भोज का बीडा नहीं भरता ।

यह चमत्कार देखकर पातु सवाई भोज के पांव पकड़ लेती है और कहती है कि आप मुझे अपनी राखी डोरा की बहन बना लीजिये, और सवाई भोज को राखी बान्ध कर अपना भाई बना लेती है ।

सवाई भोज नौलखा बाग से वापस आते समय मेघला पर्वत पर अपना दारु का बीड़ा खोलते हैं । बीड़े से इतनी दारु बहती है कि तालाब भर जाता है, धोबी उसमें अपने कपड़े धोने लगते है, वह शराब रिस कर पाताल लोक में जाने लगती है और पृथ्वी को अपने शीश पर धारण किये शेषनाग के सिर पर जाकर टपकती हैं, उससे शेषनाग कुपित हो जाते है, और तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु के पास जाकर बगड़ावतों की शिकायत करते हैं और कहते हैं कि हे नारायण बगड़ावतों को सजा देनी होगी । उन्होंने मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया है । आप कुछ करिये भगवान ।

बगड़ावत भारत कथा जारी है भाग 4 में .....

भोजा पायरा


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