ब्यावर का इतिहास | BEAWAR KA ITIHAS

ब्यावर का इतिहास | BEAWAR KA ITIHAS

BEAWAR

मैं ब्यावर बोल रहा हूँ !

अजमेर जिले का एक शहर ब्यावर !

आज मुझे भले ही बादशाह की सवारी, वीर तेजाजी मेले और ब्यावर की तिलपट्टी के लिए देशभर में जाना जाता है परंतु मेरा भी एक रोचक इतिहास रहा है । मेरी स्थापना कर्नल चार्ल्स जॉर्ज डिक्सन ने सन 1836 में की, इसका नाम ब्यावर खास नामक स्थानीय गांव के नाम पर रखा गया । ब्यावर ब्रिटिश भारत का हिस्सा था, और मेरवाड़ा जिले का प्रशासनिक मुख्यालय था ।

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मेरी स्थापना के समय मेरे यहाँ के चौड़े रास्ते, चार गेट और लंबी दीवारें थी जो समय के साथ बदली और चारदीवारी के भीतर से शुरू हुई शहर की बसावट आज कई किलोमीटर तक फैल चुकी है । चंग गेट, अजमेरी गेट, मेवाड़ी गेट और सूरजपोल गेट मेरे यहाँ के चार मुख्य दरवाजे है । मेरे यहाँ की अस्तित्व खोती प्राचीन दीवारें आज भी इतिहास जीवंत कर देती है । हालांकि 186 साल बाद भी ब्यावर जिला न बना हो, लेकिन यहां जिले जैसी हर सुविधा मौजूद है । आज मेरे यहाँ उप जिला अधीक्षक कार्यालय, तहसील मुख्यालय, पुलिस थाना, केंद्रीकृत बैंक, स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल आदि सभी सुविधाएं उपलब्ध है । दो साल पहले बनकर तैयार हुआ मेगा हाइवे रोड शहर की प्रमुख रोड है जो शहर के विकास को दिखाती है ।

मेरे यहाँ श्यामगढ़ का युद्ध काठातों और अंग्रेजों के बीच लड़ा गया था । इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई और काठातों ने श्यामगढ़ के किले को त्याग दिया, लेकिन काठातों ने छापामार युद्ध नीति अपनाई जिससे अंग्रेजों को काफी नुकसान हुआ । इसलिए अंग्रेजों ने मेरे यहाँ सुरक्षा व सैन्य अभियानों के लिए सैन्य छावनी की स्थापना की ।

इतिहास के झरोखे से देखे तो मुझे सन 1842 में नगर परिषद का दर्जा हासिल हुआ, सन 1858 में मेरे यहाँ ऊन मंडी स्थापित हुई, सन 1876 में रेलगाड़ी का आरंभ किया गया, सन 1930 में नाथूलाल घीया ने नगर पालिका में तिरंगा फहराया, मेरे यहाँ सन 1934 में अछूतोद्धार आंदोलन के लिए महात्मा गांधी का आगमन हुआ, सन 1940 में वीर तेजाजी के दो दिवसीय मेले का शुभारंभ हुआ, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं ।

मेरे यहाँ की तिलपट्टी देश विदेश में अपनी एक पहचान बना चुकी है । यहां के कुशल कारीगरों द्वारा इलायची, पिस्ता, केसर आदि से इसे तैयार किया जाता है ।

मेरे यहाँ से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर नीलकंठ महादेव मंदिर धाम स्थित है, अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच श्रृंगी ऋषि की तपोस्थली नीलकंठ महादेव तीर्थस्थल के रूप में विख्यात है जहां प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर तीन दिनों का मेला लगता है । मेरे यह से 15 किलोमीटर की दूरी पर श्यामगढ़ माताजी धाम स्थित है ।

मेरे यहाँ से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर प्राचीन कल्पवृक्ष मांगलियावास गांव में मौजूद है, यदि आप मांगलियावास कल्पवृक्ष का वीडियो देखना चाहते हैं तो लिंक डिस्क्रिप्शन में मौजूद हैं ।

कभी सूती मिलों की नगरी के रूप में प्रसिद्ध ब्यावर शहर अब सीमेंट उद्योग के रूप में अपनी पहचान बना चुका है । मेरे यहाँ से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर राजस्थान की सबसे बड़ी सीमेंट फेक्ट्री, श्री सीमेंट प्लांट मौजूद हैं ।

मेरे यहाँ मुख्य व्यवसाय खेती रहा है, लेकिन लगातार घट रहे जलस्तर और खेती के अलाभकारी व्यवसाय में तब्दील होने के कारण, युवाओं का नौकरी और व्यापार के प्रति रुझान बढ़ा है ।

अब बात करेंगे सुंदर और आकर्षक दिखने वाले बिचड़ली तालाब की, जो शहर के मध्य में स्थित है । हालांकि लगातार प्रशासन की अनदेखी और अतिक्रमण की चपेट में आकर बिचड़ली तालाब अपना अस्तित्व खो रहा है । शहर के गन्दे पानी की आवक के कारण इसका जल प्रदूषित हो गया है और कचरे से भरा पड़ा है । 

मेरे यहाँ मुख्य मंदिरों में वीर तेजाजी मंदिर, रंगजी का मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, देवनारायण मंदिर, प्राचीन म मंदिर, पंचमुखी बालाजी मंदिर, श्री शनिदेव मंदिर, भेरूजी मंदिर, बाबा रामदेव जी मंदिर, श्री जैन श्वेतांबर दादाबाड़ी आदि मौजूद हैं ।

मेरे यहाँ अन्य आकर्षण के रूप में तेजाजी मेला, ब्यावर की गजक, बादशाह की सवारी प्रसिद्ध है ।

मेरे यहाँ मुख्य स्थानों में चांग गेट चौराहा, बिट्ठल टावर, पांच बत्ती चौराहा, सूरजपोल दरवाजा, बस स्टैंड, ब्यावर रेलवे स्टेशन, तेजाजी चौराहा, फतेहपुरिया चौपड़, आदि है, मुख्य बाजारों में अग्रसेन बाजार फतेहपुरिया, पंसारी बाजार, लोहिया बाजार, महावीर बाजार, श्रद्धानन्द बाजार, पाली बाजार आदि है

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तो यह था मेरा स्वर्णिम इतिहास !

यदि आप मेरे यहाँ की यात्रा करना चाहते हैं तो रेलयात्रियों के लिए ब्यावर रेलवे स्टेशन मौजूद हैं, अजमेर अहमदाबाद जाने वाली सभी मुख्य यात्री गाड़ियों का ठहराव यहां पर है ।

बस यात्रियों के लिए ब्यावर बस स्टैंड बना हुआ है । मेरे यहाँ चारों तरफ मुख्य राजमार्गों का जाल बिछा हुआ है ।

मेरे यहाँ बोई जाने वाली फसलों में मुख्य फसलें है, गेंहू, बाजरा, कपास, मक्का, ज्वार, मूंग, मोठ, चना, ग्वार, तिल, आदि है ।

पोस्ट में किसी तरह की कमी नजर आए तो कमेंट अवश्य करें और यदि आप ब्यावर की यात्रा कर चुके हैं या यहां के निवासी हैं तो हमें बताएं कि कौनसी प्रसिद्ध जगह है जिसको इस पोस्ट में सम्मिलित किया जाना चाहिए था ।

ब्यावर

तो फिर मिलते हैं इसी तरह की किसी नई पोस्ट के साथ, तब तक के लिए नमस्कार ।

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दुधालेश्वर महादेव मंदिर टॉडगढ़ | DUDHALESHWAR MAHADEV MANDIR TODGARH

 दुधालेश्वर महादेव मंदिर टॉडगढ़ | DUDHALESHWAR MAHADEV MANDIR TODGARH

DUDHALESHWAR MAHADEV MANDIR TODGARH

नमस्कार दोस्तों, इस पोस्ट में हम आपको दुधालेश्वर महादेव मंदिर निर्माण से जुड़ा इतिहास, और दर्शन संबंधी सम्पूर्ण जानकारियां देंगे । तो पोस्ट को पूरा पढ़ें और किसी तरह की कमी नजर आए तो कमेंट अवश्य करें ।

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दुधालेश्वर महादेव मंदिर, अजमेर और राजसमंद जिले की सीमा पर अरावली की पहाड़ियों के मध्य स्थित है । दुधालेश्वर महादेव मंदिर टॉडगढ़ गांव से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, पहाड़ियों के बीच से निकलती टेढ़ी मेढी सड़क और घाटियों की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है ।

यह मंदिर लगभग 600 साल पुराना है, लोककथाओं के अनुसार कहा जाता है कि यहां एक ग्वाला अपनी गायें चराया करता था और साथ ही भगवान शिव की भक्ति किया करता था उसकी भक्ति और आस्था से प्रसन्न होकर भोलेनाथ यहां साधु के वेश में आए, और ग्वाले से पानी, दूध और भोजन मांगा ।

ग्वाले ने साधु से कहा की बाबा भोजन पानी तो दोहपर में ही खत्म हो गया था, और दूध तो बिना बछड़ों के गायें देगी नहीं, आप यही इंतजार करो मैं यहां से कुछ दूरी पर निलवाखोला कुंड जाकर वहां से जल, दूध व भोजन लाने की कोशिश करता हूं ।

ग्वाला रवाना होने लगा तो साधु बाबा ने रोका और वहीं जमीन से घास का गुच्छा उखाड़ने को कहा, और जैसे ही ग्वाले ने घास का गुच्छा उखाड़ा तो जमीन से जलधारा फूट पड़ी । ग्वाला यह देखकर हैरान हुआ और सोचने लगे कि यह साधु कोई साधारण संन्यासी नहीं बल्कि स्वयं भोलेनाथ ही हो सकते है ।

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बाबा ने जल पीकर गायों की ओर देखकर दूध मांगा । ग्वाला बोला बाबा बिना बछड़ों के गायेँ दूध नहीं देगी । तब बाबा ने ग्वाले से जलधारा पर पानी पीने आई पहली बछड़ी का दूध निकालने को कहा ।

ग्वाला बोला कि ये तो बछड़ी है, ये अभी दूध नहीं देती । जब बाबा ने फिर कहा तो ग्वाले ने बछड़ी के स्तनों से दूध निकालने हेतु हाथ आगे बढ़ाया ही था कि बछड़़ी के स्तनों से दूध की धारा फूट पड़ी ।

कहा जाता हैं कि इसलिए इस स्थान का नाम दूधालेश्वर पड़ा ।

DUDHALESHWAR MAHADEV MANDIR TODGARH

फिर बाबा ने अपनी जटाओं में से एक डेगची और चावल के कुछ दाने निकालकर ग्वाले को खीर बनाने के लिये दिये, यह देखकर ग्वाले को पूर्ण विश्वास हो गया कि यह साक्षात भोलेनाथ ही है । ग्वाले ने डेगची में दूध डाला और चावल के कुछ दाने डाले और खीर बनाई । देखते ही देखते डेगची भर गई और उसी खीर से वहां सभी ने भरपेट खाया, परंतु डेगची में खीर समाप्त नहीं हुई ।

खीर खाने के बाद बाबा वहां से जाने लगे तो ग्वाले ने उनसे आशीर्वाद लिया, और उसी स्थान पर ग्वालों ने मिलकर भोलेनाथ की प्रतिमा स्थापित कर भक्ति आराधना शुरू कर दी ।

जहां बाबा ने पानी निकाला था उसी स्थान पर आज भी छोटी पवित्र बावड़ी है जिसे गंगा मैया नाम दिया गया है । कहा जाता हैं कि बावड़ी में जलधारा निरन्तर एक ही प्रवाह से बह रही है । इस बावड़ी के जलस्तर पर अतिवृष्टि और अनावृष्टि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । यहां आने वाले श्रद्धालु इस बावड़ी के पानी में सिक्के डालकर बुलबुलों के उठने में अपनी मनोकामनाओं का फल देखते हैं ।

दुधालेश्वर महादेव मंदिर में प्रतिवर्ष हरियाली अमावस्या और महाशिवरात्रि पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें आसपास के गावों और शहरों से हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं और नाच गाने का अयोजन करते हैं ।

दुधालेश्वर महादेव मंदिर पहाड़ियों और जंगल के बीचों बीच मौजूद है, यहां आने वाले श्रद्धालुओं को जंगली जानवरों जैसे, बघेरा, भालू, लोमड़ी, आदि दिखाई दे जाते हैं । यहां पास ही एक तालाब भी मौजूद है जहां का नजारा काफी खूबसूरत है ।

यदि आप भी दुधालेश्वर महादेव मंदिर की यात्रा करना चाहते हैं तो सड़क मार्ग से अजमेर जिले के भीम शहर से लगभग 10 – 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । यहां से ऑटो और टैक्सी उपलब्ध हो जाते है ।

DUDHALESHWAR MAHADEV MANDIR TODGARH

ट्रेन से यात्रा करने वालो के लिए सोजत रोड रेलवे स्टेशन इस मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन है ।

तो चलिए वापसी करते हैं, जल्दी ही इसी तरह के किसी नई पोस्ट के साथ वापस लौटेंगे  ।

धन्यवाद ।

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नाथद्वारा शिव प्रतिमा | विश्वास स्वरूपम नाथद्वारा | NATHDWARA SHIV MURTI | STATUE OF BELIEF NATHDWARA

नाथद्वारा शिव प्रतिमा | विश्वास स्वरूपम नाथद्वारा | NATHDWARA SHIV MURTI | STATUE OF BELIEF NATHDWARA

NATHDWARA SHIV MURTI

आज हम आपको नाथद्वारा लेकर आए है, जहां भगवान शिव की सबसे विशाल मूर्ति मौजूद है इसके निर्माण और दर्शन संबंधी सम्पूर्ण जानकारियां देंगे ।

नाथद्वारा शिव प्रतिमा वीडियो लिंक

राजस्थान के राजसमंद जिले के नाथद्वारा शहर की गणेश टेकरी पर भगवान शिव की 369 फिट ऊंची प्रतिमा मौजूद है, जिसे विश्वास स्वरूपम के नाम से जाना जाता है । 51 बीघा की पहाड़ी पर बनी इस प्रतिमा में भगवान शिव ध्यान की अल्हड़ मुद्रा में बैठे हैं ।

मिराज समुह के अध्यक्ष मदन पालीवाल ने राजस्थान के पिलानी शहर के रहने वाले मूर्तिकार नरेश कुमार से भगवान शिव की यह मूर्ति तैयार करवाई । मूर्तिकार का दावा है कि मूर्ति इतनी मजबूत है कि ढाई हजार साल तक इसी तरह खड़ी रहेगी ।

भगवान शिव की इस प्रतिमा की आधारशिला अगस्त 2012 में रखी गई थी । इस मूर्ति की ऊंचाई 369 फीट है और इसे बनाने में लगभग 10 साल का समय लगा था ।

इसे बनाने में 3000 टन स्टील, 2.5 लाख क्यूबिक टन कंक्रीट और रेत का इस्तेमाल किया गया है । इंजीनियरों का कहना है की यह मूर्ति 250 किमी की गति से बहने वाली तूफानी हवा को भी सहन कर पायेगी । इसे बनाते समय इसकी सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा गया है । इसे बारिश और धूप में खराब होने से बचाने के लिए इसमें जिंक और कॉपर का लेप लगाया गया है, जो इसे जंग से भी बचाकर रखेगा ।

369 फिट ऊंची मूर्ति का केवल मस्तक ही 70 फीट लंबा है, भगवान शिव की इस प्रतिमा का नजारा करीब 20 किलोमीटर दूर से ही नजर आने लगता है । रात में तो भगवान शिव का भव्य स्वरूप दिखाई देता है ।

यह विश्व की एकमात्र शिव प्रतिमा है, जिसमें लोगों के बैठने के लिए लिफ्ट, सीढ़ियां, हॉल की व्यवस्था की गई है । इसके अलावा भी कर्नाटक के मरुदेश्वर मंदिर में 123 फीट ऊंची शिव प्रतिमा, नेपाल के कैलाशनाथ मंदिर में 143 फीट ऊंची मूर्ति, तमिलनाडु के आदियोगी मंदिर में 112 फीट ऊंची शिव प्रतिमा को पीछे छोड़ते हुए अब यह मूर्ति सबसे विशाल है ।

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यह कहा जाता है कि नंदी के बगैर शिव अधूरे हैं । ऐसे में शिव के ठीक सामने नंदी की भी मूर्ति बनवाई गई है, जो 25 फीट ऊंची और 37 फीट चौड़ी है ।

शिव प्रतिमा पर विशेष रूप से 3डी लाइट एंड साउंड का प्रयोग किया गया है, जिसमें शिव स्तुति का प्रसारण किया जाता है । 

इस प्रतिमा में शिव जी का जलाभिषेक भी किया जाएगा, इसके लिए सिर के पास दो टैंक लगाए लगे हैं, जिसमें एक टैंक के द्वारा शिव जी की जटाओं से गंगाजल बहेगा, वहीं दूसरा टैंक आपातकालीन स्थिती के लिए बनाया गया है ।

यह प्रतिमा पूरी तरह से अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है, जिसमें लिफ्ट, सीढ़ियां और हॉल की सुविधाएं दी गई है । प्रतिमा के अंदर सबसे ऊपरी हिस्से में जाने के लिए चार लिफ्ट और तीन सीढ़ियां बनाई हैं । इस प्रतिमा के अंदर एक बार करीब 10 हजार पर्यटक आ सकते हैं । इस प्रतिमा को देखने में करीब 4 घंटे का लम्बा समय लग सकता है ।

इस परिसर को पर्यटन की दृष्टि से काफी विशाल और काफी आकर्षक बनाया गया है । बच्चों के लिए गेमिंग जोन से लेकर म्यूजिकल फाउंटेन तक, एडवेंचर के दीवानों के लिए बंजी जम्पिंग, खाने-पीने के लिए फूड कोर्ट की व्यवस्था, फोटो खींचने के दीवानों के लिए सेल्फी प्वॉइंट बना हुआ है । मेन गेट से प्रवेश करने पर परिसर में आपको जिप लाइन, संगम स्थल, ओपन थिएटर, हरिहर सेतु भी देखने को मिलेगा । इस प्रतिमा के सबसे ऊपरी फ्लोर से आप आसपास का आकर्षक नजारा भी ले सकते हैं ।

यदि आप भी इस धार्मिक और पर्यटक स्थल को देखना चाहते है, तो इसके लिए आपको अपने नजदीकी रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा या बस स्टैण्ड जाने की देरी है तो सोचिए नहीं फटाफट जाइए और टिकट बुक कराइए ।

यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जेके एयरपोर्ट राजसमंद है, जबकि नजदीकी रेलवे स्टेशन नाथद्वारा रेलवे स्टेशन मौजूद है ।

STATUE OF BELIEF NATHDWARA

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मसूदा इतिहास और अन्य जानकारियां | MASUDA KA KILA | MASUDA FORT

मसूदा इतिहास और अन्य जानकारियां | MASUDA KA KILA | MASUDA FORT

MASUDA KA KILA

सूदा अजमेर जिले का एक छोटा सा शहर है ! मसूदा को वर्तमान में देवनारायण जी धाम देवमाली के रूप में विख्यात है, यहां से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर श्यामगढ़ माताजी धाम विद्यमान है ।

मसूदा इतिहास और अन्य जानकारियां वीडियो लिंक 

जबकि 15 किलोमीटर की दूरी पर ब्यावर शहर स्थित है, जो अब जिला बनने जा रहा है, जहां की गजक व धुलंडी के दिन निकाली जाने वाली बादशाह की सवारी, व वीर तेजाजी मेला देशभर में प्रसिद्ध है ।

मसूदा में 400 वर्ष प्राचीन डांगेश्वर महादेव मंदिर स्थित है, किसी जमाने में यहां डांग ( जानवरों को चराने का चारागाह ) हुआ करती थी, इसलिए इसका नाम डांगेश्वर महादेव मंदिर पड़ा, यहां प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर भव्य मेला लगता है जिसमें दूर दराज के गांवों के शिव भक्त जुटते है ।

1919 में मसूदा के राव बिजयसिंह ने ही खारी नदी के तट पर बिजयनगर की स्थापना की ।

मसूदा का किला

मसूदा किले का निर्माण प्राकृतिक रूप से निर्मित टिले पर लगभग 1595 ईसवी में किया गया था, परंतु जल्दी ही किला खंडहर में बदल गया और लगभग 30 साल पश्चात नरसिंह मेरठिया द्वारा किले का जीर्णोद्धार करवाया गया, जो आज भी सीना ताने खड़ा है । मसूदा किला अपनी अद्भुद स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है ।

यहाँ से पांच किलोमीटर की दूरी पर देवरिया माता का भव्य मंदिर बना हुआ है, जहां प्रतिवर्ष नवरात्रि में विशाल मेला लगता है ।

मसूदा इतिहास और अन्य जानकारियां वीडियो लिंक

मसूदा के दक्षिणी दिशा में गोपाल सागर तालाब और उसकी पाल पर कुंड के इच्छापूर्ण बालाजी मंदिर स्थित है, पानी से लबालब भरा तालाब मसूदा शहर के सौंदर्य में चार चांद लगा देता है ।

मसूदा में अन्य आकर्षण के रूप में भादवा छठ को भरने वाला देवमाली मेला, देवरिया माता मेला, तेजाजी मेला, श्यामगढ़ माताजी मेला आदि प्रसिद्ध है ।

इसके अलावा यहाँ मुख्य मंदिर कुंड वाले बालाजी मंदिर, डांगेश्वर महादेव मंदिर, तेजाजी मंदिर, आदि प्रसिद्ध है ।

MASUDA

यहाँ की यात्रा करना चाहते हैं तो रेल यात्रिय बिजयनगर या बांदनवाड़ा रेलवे स्टेशन पर उतरकर आ सकते है, अजमेर से चित्तौड़गढ़ जाने वाली लगभग सभी यात्री गाड़ियों का ठहराव इन स्टेशनों पर है ।

बस यात्रियों के लिए मसूदा बस स्टैंड बनाया हुआ है जहां से देशभर के शहरों के लिए बस सेवा उपलब्ध है ।

यहाँ बोई जाने वाली फसलों में मुख्य फसलें है, कपास गेंहू, बाजरा, मक्का, ज्वार, मूंग, मोठ, चना, ग्वार, तिल, आदि

तो यह थी, मसूदा शहर के बारे में जानकारी ।

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कुचामन किले का इतिहास व अन्य जानकारियां | KUCHAMAN FORT HISTORY | KUCHAMAN KA KILA

कुचामन किले का इतिहास व अन्य जानकारियां | KUCHAMAN FORT HISTORY | KUCHAMAN KA KILA

KUCHAMAN FORT

आज हम आपको कुचामन किले का इतिहास व अन्य जानकारियां इस पोस्ट में देंगे ।

कुचामन किले का इतिहास वीडियो लिंक

कुचामन सिटी नागौर जिले का एक ऐतिहासिक कस्बा है । कुचामन पूर्व जोधपुर रियासत में मेड़तिया राठौडों का एक प्रमुख ठिकाना था, जो न केवल अपने शासकों की वीरता और स्वामीभक्ति एवं बलिदान की घटनाओं के लिए विख्यात है, अपित अपने भव्य और सुदृढ़ दुर्ग के लिये भी प्रसिद्ध है । कुचामन का किला अपनी भव्यता के कारण रियासतों के किलों से टक्कर लेता है, इसलिए यदि कुचामन के किले को जागीरी किलों का सिरमौर कहा जाता है ।

एक जनश्रुति के अनुसार जिस पर्वतांचल में कुचामन बसा है, वहाँ पूर्व में कुचबंधियों की ढाणी थी । अनुमान है कि उसी के आधार पर यह कस्बा कुचामन कहलाया । इतिहास में उल्लेख मिलता है कि इस कस्बे पर प्राचीन समय में गौड़ क्षत्रियों का वर्चस्व था जिसका प्रमाण कुचामन के आस-पास के क्षेत्रों मिठडी, लिचाणा एवं नावां क्षेत्र में मिलते हैं । उस काल में मारोठ इसकी राजधानी थी जो कि एक प्राचीन नगर है ।

कहा जाता है की मुगल बादशाह शाहजहाँ के काल तक गौड़ों का प्रकर्ष था, तत्पश्चात यह भू-भाग जोधपुर रियासत के अधीन हो गया । जोधपुर के महाराज अभयसिंह ने 1727 ई. में जालिमसिंह मेड़तिया को कुचामन की जागीर प्रदान की थी । रियासत काल में कुचामन जोधपुर राज्य के अधीन था जिसके अधिकार में 193 गाँव आते थे । जालिमसिंह वीर और पराक्रमी थे वह जोधपुर रियासत की ओर से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । कहा जाता है कि यहाँ के शासक जोधपुर रियासत के प्रति सदैव स्वामीभक्त रहे ।

अलवर के बख्तावरसिंह का 1793 ई. में कुचामन की राजकुमारी से सम्पन्न हुआ, जिनके बेटे ठाकुर हरीसिंह कुचामन के अंतिम शासक हुए, उनके कोई पुत्र नहीं था तो, उन्होंने यह किला कुचामन की गौशाला के लिए दान किया ।

अब जानते हैं कुचामन के किले के बारे में 

वीरता, शौर्य और स्वामिभक्ति का प्रतीक कुचामन का किला, कुचामन शहर के बीचों बीच एक विशाल पहाड़ी पर स्थित है, कुचामन का किला पहाड़ी दुर्ग का सुन्दर उदाहरण है ।

मजबूत प्राचीर और बुर्जों वाला यह किला प्राचीन स्थापत्य शैली का अनुपम उदाहरण है ।

इस दुर्ग का निर्माण किसने करवाया इस बारे में प्रामाणिक तथ्यों का अभाव है । प्रचलित जनश्रुति के अनुसार एक बार जालिम सिंह मेड़तिया नामक राजकुमार अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने यहां आया और भटककर इस पहाड़ी के नजदीक आ गया । सैनिकों से बिछुडे जालिम सिंह ने सूर्यास्त होने के कारण वहीं रात्रि विश्राम करने की सोची । रात्रि में पहाड़ी की चोटी पर आग जलती दिखाई दी तो जालिम सिंह को आश्चर्य और जिज्ञासा हुई की रात्रि में यहां कौन है ? हो सकता है उसके सैनिक हो । इसी आशा में जालिम सिंह पहाड़ी की चोटी पर पहुंचा तो देखा कि एक बाबा वहां धूणी तप रहा था ।

धूणी तप रहे बाबा ने जालिम सिंह को वहां देखकर पूंछा “ जालिम सिंह तुम इतनी देर से क्यों आए ? मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं ।“

जालिम सिंह ने पूंछा की आप कौन है और मेरा नाम कैसे जानते है ? तब बाबा ने बताया कि में वनखंडी बाबा हूं और में तुम्हारे बारे में सब जानता हूं ।

जालिम सिंह बाबा के पैरों में गिर गया और तब बाबा ने उसे कहा कि यहां एक विशाल किले का निर्माण करवाओ और अपना राज्य बसाओ ।

जालिम सिंह ने कहा कि बाबा मेरे पास पैसा कहां ?? तब वनखंडी बाबा ने कहा कि मेरी धूणी में रोजाना सुबह पूजा करना वहीं पर किले का निर्माण करने लायक धन मिलेगा ।

और ऐसा ही हुआ । कहा जाता है की उसी धन से जालिम सिंह ने इस किले का निर्माण करवाया था ।

कुचामन किले का इतिहास वीडियो लिंक

हालांकि इतिहासकर सम्भावना व्यक्त करते हैं की इस किले का निर्माण गौड़ शासकों द्वारा किया गया था । जालिम सिंह ने केवल इस किले का जीर्णोद्धार करवाया था ।

इस पहाड़ी किले के ऊपर जाने के लिए काफी लंबा और खड़ी चढ़ाई लिए घुमावदार रास्ता बना है । इस किले में 18 बुर्ज, भव्य महल, रनिवासा, अन्न भंडार, पानी के 5 विशालकाय टाँके, और बहुत से मन्दिर भी बने हुए हैं ।

किले के भवनों में बारीक व सुन्दर कला कार्य किया गया है । रनिवासा एवं शीश महल भी अपने शिल्प एवं सौन्दर्य के कारण दर्शनीय हैं ।

जल संग्रहण के लिए किले में विशालकाय 5 टांके है, जिनमें पातालतोड हौज और अन्धेरया हौज मुख्य हैं ।

यहां शिव मंदिर के समीप एक विशाल स्विमिंग पुल भी मौजूद है जो स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण हैं ।

प्राचीन समय में कुचामन के किले के निचे पानी की विशाल नहर बहती थी, जिसका भी किले की सुरक्षा में विशेष महत्त्व था ।

किले के भीतरी चौक में घोड़ों के बाड़े और हस्तिशाला भी विद्यमान है ।

इस किले का शस्त्रागार भी काफी बड़ा है जिसमें आज भी शीशा एवं बारूद रखने के पृथक-पृथक कक्ष बने हुए हैं । तथा तोप के गोले आज भी रखे हुए है ।

किले के उत्तर की ओर टीला है जो आज भी हाथी टीबा कहलाता है । किले के पूर्व में एक छोटी डूंगरी पर भव्य सूर्यमन्दिर स्थित है । गणेश डूंगरी पर भगवान गणेश का भव्य मन्दिर स्थित है । कुचामन के इस किले का कभी शत्रु सेना के समक्ष पतन नहीं हुआ, इसलिए यह अणखला किला कहलाता है । कुचामन में मारवाड़ राज्य की टकसाल थी जिसमें ढले हुए सिक्के कुचामनी सिक्के कहलाते थे ।

ऐतिहासिक कस्बा कुचामन अतीत में एक सुदृढ़ परकोटे के भीतर बसा, जिसके प्रमुख प्रवेशद्वार में आथूणा दरवाजा, चाँदपोल, सूरजपोल, कश्मीरी दरवाजा, पलटन दरवाजा, होद का दरवाजा और धारी दरवाजा उल्लेखनीय है, पूर्व में कुचामन में बन्दुकिया मुसलमानों की बस्ती थी जो बन्दूके बनाने एवं मरम्मत का कार्य करते थे ।

रियासत काल में ही यहाँ लोकनाट्य की अपनी मौलिक शैली और परम्परा विकसित हुई जो कुचामन ख्याल के नाम से प्रसिद्ध है, कुचामन में गणगौर के मेले की प्राचीन परम्परा है ।

KUCHAMAN KA KILA

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धन्यवाद ।

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बंक्या रानी माताजी मंदिर आसींद | BANKYA RANI MATAJI MANDIR ASIND

बंक्या रानी माताजी मंदिर आसींद | BANKYA RANI MATAJI MANDIR ASIND

BANKYA RANI MATAJI MANDIR ASIND

आज हम आपको बंक्या रानी माताजी मंदिर, आमेसर, आसींद के बारे में इतिहास और दर्शन संबंधी सम्पूर्ण जानकारियां देंगे ।

बंक्या रानी माताजी मंदिर आसींद वीडियो लिंक

प्रचलित लोककथाओं के आधार पर मंदिर के पुजारी व ट्रस्टी देवीलाल ने बताया कि एक बार की बात है, बकेसुर नामक राक्षस के अत्याचारों से त्रस्त होकर बंक्यामाताजी ने उसका वध करने के लिए बांके गढ़ में प्रकट हुई । बकेसुर का वध करने के पश्चात वहां से प्रस्थान कर आकाश मार्ग से जा रही थी, उसी समय प्राचीन बदनोर प्रांत के आमेसर के जंगलों में बाल गोपाल पशु चरा रहे थे, जिन्हें वे दिखाई दी और माताजी को देखकर वे चिल्ला चिल्लाकर माताजी को पुकारने लगे ।

बालकों के पुकारने पर बंक्या माताजी ने अपनी यात्रा स्थगित की और वर्तमान में स्थापित मूर्ति की जगह उतर आई । उसी जगह पर माताजी ने पाषाण का रूप धारण किया ।

एक अन्य कथा के अनुसार ईसरदास पंवार निसंतान था, माताजी ने उसको बच्चा दिया इसके बदले में ईसरदास को महिषासुर भैंसे की बलि देनी थी, लेकिन वह वादा भूल गया । जब उसका बच्चा 12 वर्ष हुआ, तब बच्चे ने कहां कि मैं बंक्यारानी के समर्पित होने जा रहा हूं और माताजी मंदिर में जाकर अपना शीश मां के अर्पित कर दिया । परिवारजन जब वहा आए तो शीश कटा हुआ सोने की थाली में पड़ा था । ईसरदास के माताजी से माफी मांगी और भैसे की बलि दी तब उसका बालक वापस जीवित हो गया ।

आज भी मंदिर के बाहर कटे हुए धड़ पर सर रखे हुए की मूर्ति लगी हुई है, हालांकि यहां शिलालेख भी है, लेकिन अब उस पर कुछ नजर नहीं आता ।

बंक्या रानी माताजी मंदिर आसींद वीडियो लिंक

बंक्या माताजी का यह मंदिर विशेष तौर पर भूत प्रेत टोन टोटके आदि के ईलाज के लिए जाना जाता है, यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु प्रेत बाधा से छुटकारा पाने के लिए आते हैं, कहा जाता है कि माताजी मंदिर परिसर में आते ही भूत प्रेत आदि की बीमारी से ग्रस्त रोगी के आचार विचार में अचानक परिवर्तन आ जाता है ।

बंक्या रानी माताजी मंदिर से एक किलोमीटर दूर आमेसर रोड पर हनुमान मंदिर है । माताजी मंदिर आने वाले भक्त बिना हनुमान मंदिर दर्शन के नहीं जाते ।

नवरात्र के 9 दिन तक कई परिवार यहां पर रहते हैं । महिलाएं पैदल एक किलोमीटर दूर स्थित हनुमान मंदिर तक जाती है और वहां मौजूद कुंड में स्नान कर अपनी यात्रा पूर्ण करती है ।

बंक्यारानी माता मंदिर आसींद से 12 किमी दूर आसींद शाहपुरा रोड़ पर स्थित है । नजदीकी रेलवे स्टेशन मांडल या भीलवाड़ा मौजूद है, जहां से बस द्वारा बंक्या माताजी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

प्रत्येक नवरात्र में यहां मेले जैसा माहौल रहता है । शक्ति स्थल पर वर्तमान में सरकार ने ट्रस्ट का गठन किया । हर साल शारदीय व चैत्र नवरात्र में यहां प्रतिदिन माता का विशेष श्रृंगार किया जाता है ।

मंदिर परिसर में भेरूजी का मंदिर भी मौजूद है ।

BANKYA RANI MATAJI MANDIR

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धन्यवाद ।

बंक्या रानी माताजी मंदिर आसींद वीडियो लिंक

धानेश्वर तीर्थ फुलिया कलां | छोटा पुष्कर धाम | DHANESHWAR DHAM | CHHOTA PUSHKAR

धानेश्वर तीर्थ फुलिया कलां | छोटा पुष्कर धाम | DHANESHWAR DHAM | CHHOTA PUSHKAR

DHANESHWAR TIRTH 

आज हम आपको लेकर आए हैं छोटा पुष्कर के नाम से विख्यात धानेश्वर तीर्थ, फुलिया कलां । वर्तमान में भिलवाड़ा जिले में मौजूद यह तीर्थ केकड़ी से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर खारी नदी, मानसी नदी और रामनाले के त्रिवेणी संगम पर धानेश्वर तीर्थ स्थल मौजूद है, यहां छोटे बड़े 50 से ज्यादा मंदिर मौजूद है इसी कारण इसे छोटा पुष्कर के नाम से जाना जाता है ।

धानेश्वर तीर्थ वीडियो लिंक

धानेश्वर गांव में कोई घर नहीं है, यहां केवल मंदिर और धर्मशालाएं मौजूद हैं, इसलिए इसे मन्दिरों का गांव भी कहा जाता है । नजदीकी गांव फुलिया कलां यहां से 5 किलोमिटर की दूरी पर स्थित है ।

खारी, मानसी और राम नाले का त्रिवेणी संगम होने तथा आसपास प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस स्थल को तपस्या के लिए को उचित मानकर दशकों पहले बाबा नारायणदास महाराज ने यहीं पर धूणी रमाकर तपस्या की थी । कहा जाता हैं कि बाबा नारायणदास महाराज द्वारा दी गई धूणी की भभूत से लोगों की परेशानियां दूर हो जाती थी । 

समय के साथ आसपास के ग्रामीणों की बाबा के प्रति आस्था बढ़ती गई, और उन्हीं की सद्प्रेरणा से ही धानेश्वर मे आज विभिन्न समाजों के लगभग 50 से अधिक मंदिर विद्यमान है | यहां तेजाजी, देवनारायण जी, बाबा रामदेव जी, चारभुजानाथ, राधा कृष्ण, राम दरबार, शिव मंदिर आदि बहुत से मंदिर विद्यमान है ।

इकतालीस सालों की तपस्या के बाद बाबा नारायणदास का संवत 2049 में स्वर्गवास हो गया था । बाबा नारायणदास की याद में ग्रामीणों ने वहीं पर नारायणधाम आश्रम का निर्माण करवाया था ।

DHANESHWAR DHAM CHHOTA PUSHKAR

धानेश्वर तीर्थ में सभी समाजों के भव्य मंदिर व धर्मशालाओं का निर्माण करवाया गया है, यहां त्रिवेणी संगम पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है, वर्षाकाल में यहां की खूबसूरती हजारों गुना बढ़ जाती है ।

धानेश्वर धाम पर प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है, यह मेला इस क्षेत्र का सबसे विशाल मेला होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं, इस मेले में जगह जगह से भजन मंडलियां आती है और नाच गाने का प्रदर्शन करती है ।

धानेश्वर तीर्थ वीडियो लिंक

फुलियां कलां ग्रामपंचायत की ओर से मेले में लाइट पानी और अन्य सुविधाओं का इंतजाम किया जाता है ।

इसके अलावा प्रत्येक पूर्णिमा को भी यहां किसी मेले का सा माहौल रहता है, आसपास के गावों के श्रद्धालु यहां पूर्णिमा स्नान के लिए आते है ।

धानेश्वर तीर्थ फुलिया कलां में अभी 6 मई 2023 से 14 मई 2023 तक रुद्र महायज्ञ एवं रामकथा, तथा संत सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा ।

एकादश रुद्र महायज्ञ के आयोजन के लिए यहां चार मंजिला यज्ञ मंडप का निर्माण किया गया है । आयोजन स्थल नारायणधाम आश्रम की खूबसूरत साज सज्जा भी की गई है ।

आयोजन के प्रोग्राम के आधार पर 6 मई  2023 को भव्य कलशयात्रा निकाली जाएगी । वहीं कलश यात्रा गाजेबाजे एवं हाथी घोड़ों के रथों के साथ फूलिया कलां गांव से रवाना होकर आयोजन स्थल धानेश्वर धाम पहुंचेगी । जहां प्रायश्चित संकल्प, दशविधि स्नान, पंचांग पूजन , मंडप प्रवेश, एवम् देवस्थापनआचार्य विप्र पूजन होगा ।

7 मई को नित्यार्चन, देवपूजन, मंडपपूजन, कुंडपूजन, एवम् अग्निस्थापना के साथ रुद्र महायज्ञ प्रारंभ होगा । 6 मई 2023 से 14 मई 2023 तक रोजाना दोपहर 2 बजे से 6 बजे तक नौदिवसीय रामकथा का आयोजन होगा ।

14 मई 2023 को विशाल भंडारे का आयोजन होगा ।

यदि आप भी धानेश्वर तीर्थ स्थल की यात्रा करना चाहते हैं तो सड़क मार्ग से केकड़ी, शाहपुरा और बिजयनगर से लगभग 25 – 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । इन शहरों से ऑटो और टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाते है ।

ट्रेन से यात्रा करने वालो के लिए बिजयनगर इस मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन है । जहां से टैक्सी या टेम्पो उपलब्ध है ।

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DHANESHWAR TIRTH CHHOTA PUSHKAR

बाबा रामदेव जी मंदिर बिराटिया खुर्द | BABA RAMDEV JI MANDIR BIRATIYA KHURD

बाबा रामदेव जी मंदिर बिराटिया खुर्द | BABA RAMDEV JI MANDIR BIRATIYA KHURD

BABA RAMDEV JI MANDIR BIRATIYA KHURD

इस पोस्ट में हम आपको बाबा रामदेव जी मंदिर बिराटिया खुर्द, जो छोटा रूणिचा के नाम से विख्यात है । पाली के इतिहास और दर्शन संबंधी जानकारीयां देंगे ।

बाबा रामदेव जी मंदिर बिराटिया विडियो लिंक

पाली जिले की रायपुर तहसील के बसे 5 किलोमीटर की दूरी पर बाबा रामदेवजी का विशाल मंदिर मौजूद हैं ।

कहा जाता है कि सैकड़ों वर्षों पहले मेवाड़ के मोहनगढ़ निवासी दल्ला सेठ ने बाबा रामदेव जी की पदयात्रा पर जाते साधुओं को देख उनसे पूंछा की कहां जा रहे हो ? साधुओं ने कहा कि बाबा रामदेवजी धाम रामदेवरा की यात्रा पर जा रहे हैं ।

तब दल्ला सेठ ने बाबा रामदेवजी की ध्वजा को अपनी सेठानी की भुजा पर बांधी फलस्वरूप नौवें महीने सेठजी को पुत्र प्राप्ति हुई । पुत्र प्राप्ति पर दल्ला सेठ अपनी धन दौलत बाबा के दरबार में अर्पित करने के लिए अंधी सेठानी के साथ रामदेवरा की यात्रा पर रवाना हुए उसी गांव का करमा डाकू भी सेठ की दौलत लूटने के इरादे से उनके साथ हो लिया । सेठानी ने साथ ले जाने से मना किया तब करमा डाकू ने कहा कि उसे रास्ता मालूम है और किसी तरह की धोखा नहीं करने की कसम खाई ।

परंतु वो तो डाकू था अपनी करनी से बाज नहीं आया और वर्तमान मंदिर के स्थान उस समय घना जंगल था, करमा डाकू ने यहीं पर रात्रि विश्राम के लिए सेठ को रोका और रात्रि में दल्ला सेठ का सिर काट कर मार डाला । और धन दौलत लूट ली।

आखों से अंधी सेठानी ने बाबा रामदेवजी से सहायता की अरदास की तब बाबा रामदेवजी ने साक्षात दर्शन दिए और दल्ला सेठ को जीवन दान दिया, और करमा डाकू को कोढ़ी और अंधा बनाकर छोड़ दिया ।

कहा जाता है की तब दल्ला सेठ ने उसी जगह को रामदेवरा मानकर वहां पर बाबा रामदेवजी का विशाल मंदिर बनाया और बाबा रामदेवजी की भक्ति में जीवन गुजारा । बाबा रामदेवजी के साक्षात दर्शन देने के कारण इस मंदिर को छोटा रुणिचा के नाम से भी जाना जाता है और आमजन में इस मंदिर पे प्रति गहन आस्था है ।

बाबा रामदेव जी मंदिर बिराटिया विडियो लिंक

कहा जाता हैं की यहां बाबा रामदेवजी के चरणों के निशान आज भी मौजूद हैं ।

इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 1593 में किया गया था और पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार के सदस्य यहां पुजारी का कार्य करते हैं, जिनकी प्रतिमाएं मंदिर के द्वार पर स्थापित है । वर्तमान में यहां श्री हनुमान दास जी तंवर पुजारी है ।

यहां भादवी सुदी दशमी से तेरस तक प्रतिवर्ष भव्य मेला भरता है, मेले का वीडियो आपको डिस्क्रिप्सन में मिल जायेगा भादवा सुदी दशमी को यहां रामदेवरा से बाबा की जोत आती हैं जिसे देखने राजस्थान के कई जिलों से पैदल दर्शनार्थी पहुंचते हैं

इस मंदिर तक पहुंचने के लिए नजदीकी शहर बर है, ब्यावर से 25 किलोमीटर की दूरी पर मंदिर मौजूद है । रेल मार्ग से बर रेलवे स्टेशन मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।

BABA RAMDEV JI MANDIR BIRATIYA

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बाबा रामदेव जी मंदिर बिराटिया विडियो लिंक

देवनारायण जी मंदिर देवडूंगरी रायरा कलां | DEVNARAYAN JI MANDIR DEVDUNGRI RAYRA KALAN

देवनारायण जी मंदिर देवडूंगरी रायरा कलां | DEVNARAYAN JI MANDIR DEVDUNGRI RAYRA KALAN

DEVNARAYAN JI MANDIR DEVDUNGRI RAYRA KALAN

आज हम आपको भगवान देवनारायण जी मंदिर देवडूंगरी रायरा कलां, पाली के इतिहास, दर्शन संबंधी सम्पूर्ण जानकारियां देंगे।

पाली जिले की रायपुर तहसील के रायरा कलां, बिंजा गुड़ा और सिंगपुरा गांव के कांकड़ में भगवान देवनारायण जी का विशाल मंदिर मौजूद हैं ।

देवनारायण जी मंदिर देवडूंगरी रायरा कलां वीडियो लिंक

कहा जाता है कि सैकड़ों वर्षों पहले बगड़ी नगर निवासी अमराराम कलास नामक व्यक्ति यहां अपनी गाएं चराया करता था और भगवान देवनारायण जी की भक्ति करता था । गायें चराते हुए को एक दिन भगवान देवनारायण जी ने साक्षात दर्शन दिए । अमराराम कलास ने भगवान के पैर पकड़ लिए तब भगवान देवनारायण जी ने कहा कि बेटा वो सामने जो डूंगरी नजर आ रही है, इस पर गंगाण का पेड़ है, वहां खुदाई करो वहां तुम्हें मेरी मूर्ति, झालर टोकरा, शंख और धुपेड़ा मिलेंगे । तुम इसी डूंगरी पर मंदिर बनवाना ।

भक्त ने भगवान को हाथ जोड़कर कहां की भगवान में गरीब ग्वाला कहां से मंदिर बनवाने के लिए धन लाऊंगा ?

तब भगवान ने कहा कि बेटा इसकी चिंता मत करो तुम रोजाना यहां गुगल का धूप करना, सुबह जब तुम आओगे धुपेड़ा के नीचे सोने का सिक्का मिलेगा ।

अमरा राम ने भगवान के कहे अनुसार ही धूप किया और रोजाना सुबह सोने का सिक्का मिलने लगा, जिससे उसी डूंगरी पर भगवान देवनारायण जी का विशाल मंदिर बनवाया और आजीवन भगवान की आराधना की

एक अन्य कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक बार एक भक्त यह भगवान देवनारायण जी की आराधना करने आते समय अपने घोड़े को मंदिर से कुछ दूरी पर धोकडे के सूखे ठूठ से बांधकर गए वापस लौटने पर देखा की धोकडे का ठूठ हरे भरे धौकड़े के वृक्ष में बदल चुका था ।

वह धौकड़े का वृक्ष आज भी मौजूद है । देवडूंगरी से देवली हुल्ला के रास्ते पर गांव बिंजा गुड़ा की सीमा पर मौजूद हैं, जिसे अमर धोक के रूप में जाना जाता है ।

इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 1157 बैशाख सुदी सातम को किया गया ।

देवनारायण जी मंदिर देवडूंगरी रायरा कलां वीडियो लिंक

यहां भादवी छठ को देवनारायण जी का विशाल मेला लगता है और राजस्थान के कई जिलों से पैदल दर्शनार्थी पहुंचते हैं.

इस मंदिर तक पहुंचने के लिए नजदीकी शहर रायपुर या चंडावल है, रेल मार्ग से गुड़िया रेलवे स्टेशन मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । गांव से दूर जंगल में मौजूद होने के कारण बस सुविधा उपलब्ध नहीं है । पर्सनल साधन या टेंपो से यहां तक पहुंचा जा सकता है ।

DEVNARAYAN JI MANDIR DEVDUNGRI RAYRA KALAN

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