कुचामन किले का इतिहास व अन्य जानकारियां | KUCHAMAN FORT HISTORY | KUCHAMAN KA KILA

कुचामन किले का इतिहास व अन्य जानकारियां | KUCHAMAN FORT HISTORY | KUCHAMAN KA KILA

KUCHAMAN FORT

आज हम आपको कुचामन किले का इतिहास व अन्य जानकारियां इस पोस्ट में देंगे ।

कुचामन किले का इतिहास वीडियो लिंक

कुचामन सिटी नागौर जिले का एक ऐतिहासिक कस्बा है । कुचामन पूर्व जोधपुर रियासत में मेड़तिया राठौडों का एक प्रमुख ठिकाना था, जो न केवल अपने शासकों की वीरता और स्वामीभक्ति एवं बलिदान की घटनाओं के लिए विख्यात है, अपित अपने भव्य और सुदृढ़ दुर्ग के लिये भी प्रसिद्ध है । कुचामन का किला अपनी भव्यता के कारण रियासतों के किलों से टक्कर लेता है, इसलिए यदि कुचामन के किले को जागीरी किलों का सिरमौर कहा जाता है ।

एक जनश्रुति के अनुसार जिस पर्वतांचल में कुचामन बसा है, वहाँ पूर्व में कुचबंधियों की ढाणी थी । अनुमान है कि उसी के आधार पर यह कस्बा कुचामन कहलाया । इतिहास में उल्लेख मिलता है कि इस कस्बे पर प्राचीन समय में गौड़ क्षत्रियों का वर्चस्व था जिसका प्रमाण कुचामन के आस-पास के क्षेत्रों मिठडी, लिचाणा एवं नावां क्षेत्र में मिलते हैं । उस काल में मारोठ इसकी राजधानी थी जो कि एक प्राचीन नगर है ।

कहा जाता है की मुगल बादशाह शाहजहाँ के काल तक गौड़ों का प्रकर्ष था, तत्पश्चात यह भू-भाग जोधपुर रियासत के अधीन हो गया । जोधपुर के महाराज अभयसिंह ने 1727 ई. में जालिमसिंह मेड़तिया को कुचामन की जागीर प्रदान की थी । रियासत काल में कुचामन जोधपुर राज्य के अधीन था जिसके अधिकार में 193 गाँव आते थे । जालिमसिंह वीर और पराक्रमी थे वह जोधपुर रियासत की ओर से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । कहा जाता है कि यहाँ के शासक जोधपुर रियासत के प्रति सदैव स्वामीभक्त रहे ।

अलवर के बख्तावरसिंह का 1793 ई. में कुचामन की राजकुमारी से सम्पन्न हुआ, जिनके बेटे ठाकुर हरीसिंह कुचामन के अंतिम शासक हुए, उनके कोई पुत्र नहीं था तो, उन्होंने यह किला कुचामन की गौशाला के लिए दान किया ।

अब जानते हैं कुचामन के किले के बारे में 

वीरता, शौर्य और स्वामिभक्ति का प्रतीक कुचामन का किला, कुचामन शहर के बीचों बीच एक विशाल पहाड़ी पर स्थित है, कुचामन का किला पहाड़ी दुर्ग का सुन्दर उदाहरण है ।

मजबूत प्राचीर और बुर्जों वाला यह किला प्राचीन स्थापत्य शैली का अनुपम उदाहरण है ।

इस दुर्ग का निर्माण किसने करवाया इस बारे में प्रामाणिक तथ्यों का अभाव है । प्रचलित जनश्रुति के अनुसार एक बार जालिम सिंह मेड़तिया नामक राजकुमार अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने यहां आया और भटककर इस पहाड़ी के नजदीक आ गया । सैनिकों से बिछुडे जालिम सिंह ने सूर्यास्त होने के कारण वहीं रात्रि विश्राम करने की सोची । रात्रि में पहाड़ी की चोटी पर आग जलती दिखाई दी तो जालिम सिंह को आश्चर्य और जिज्ञासा हुई की रात्रि में यहां कौन है ? हो सकता है उसके सैनिक हो । इसी आशा में जालिम सिंह पहाड़ी की चोटी पर पहुंचा तो देखा कि एक बाबा वहां धूणी तप रहा था ।

धूणी तप रहे बाबा ने जालिम सिंह को वहां देखकर पूंछा “ जालिम सिंह तुम इतनी देर से क्यों आए ? मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं ।“

जालिम सिंह ने पूंछा की आप कौन है और मेरा नाम कैसे जानते है ? तब बाबा ने बताया कि में वनखंडी बाबा हूं और में तुम्हारे बारे में सब जानता हूं ।

जालिम सिंह बाबा के पैरों में गिर गया और तब बाबा ने उसे कहा कि यहां एक विशाल किले का निर्माण करवाओ और अपना राज्य बसाओ ।

जालिम सिंह ने कहा कि बाबा मेरे पास पैसा कहां ?? तब वनखंडी बाबा ने कहा कि मेरी धूणी में रोजाना सुबह पूजा करना वहीं पर किले का निर्माण करने लायक धन मिलेगा ।

और ऐसा ही हुआ । कहा जाता है की उसी धन से जालिम सिंह ने इस किले का निर्माण करवाया था ।

कुचामन किले का इतिहास वीडियो लिंक

हालांकि इतिहासकर सम्भावना व्यक्त करते हैं की इस किले का निर्माण गौड़ शासकों द्वारा किया गया था । जालिम सिंह ने केवल इस किले का जीर्णोद्धार करवाया था ।

इस पहाड़ी किले के ऊपर जाने के लिए काफी लंबा और खड़ी चढ़ाई लिए घुमावदार रास्ता बना है । इस किले में 18 बुर्ज, भव्य महल, रनिवासा, अन्न भंडार, पानी के 5 विशालकाय टाँके, और बहुत से मन्दिर भी बने हुए हैं ।

किले के भवनों में बारीक व सुन्दर कला कार्य किया गया है । रनिवासा एवं शीश महल भी अपने शिल्प एवं सौन्दर्य के कारण दर्शनीय हैं ।

जल संग्रहण के लिए किले में विशालकाय 5 टांके है, जिनमें पातालतोड हौज और अन्धेरया हौज मुख्य हैं ।

यहां शिव मंदिर के समीप एक विशाल स्विमिंग पुल भी मौजूद है जो स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण हैं ।

प्राचीन समय में कुचामन के किले के निचे पानी की विशाल नहर बहती थी, जिसका भी किले की सुरक्षा में विशेष महत्त्व था ।

किले के भीतरी चौक में घोड़ों के बाड़े और हस्तिशाला भी विद्यमान है ।

इस किले का शस्त्रागार भी काफी बड़ा है जिसमें आज भी शीशा एवं बारूद रखने के पृथक-पृथक कक्ष बने हुए हैं । तथा तोप के गोले आज भी रखे हुए है ।

किले के उत्तर की ओर टीला है जो आज भी हाथी टीबा कहलाता है । किले के पूर्व में एक छोटी डूंगरी पर भव्य सूर्यमन्दिर स्थित है । गणेश डूंगरी पर भगवान गणेश का भव्य मन्दिर स्थित है । कुचामन के इस किले का कभी शत्रु सेना के समक्ष पतन नहीं हुआ, इसलिए यह अणखला किला कहलाता है । कुचामन में मारवाड़ राज्य की टकसाल थी जिसमें ढले हुए सिक्के कुचामनी सिक्के कहलाते थे ।

ऐतिहासिक कस्बा कुचामन अतीत में एक सुदृढ़ परकोटे के भीतर बसा, जिसके प्रमुख प्रवेशद्वार में आथूणा दरवाजा, चाँदपोल, सूरजपोल, कश्मीरी दरवाजा, पलटन दरवाजा, होद का दरवाजा और धारी दरवाजा उल्लेखनीय है, पूर्व में कुचामन में बन्दुकिया मुसलमानों की बस्ती थी जो बन्दूके बनाने एवं मरम्मत का कार्य करते थे ।

रियासत काल में ही यहाँ लोकनाट्य की अपनी मौलिक शैली और परम्परा विकसित हुई जो कुचामन ख्याल के नाम से प्रसिद्ध है, कुचामन में गणगौर के मेले की प्राचीन परम्परा है ।

KUCHAMAN KA KILA

तो चलिए वापसी करते हैं, जल्दी ही इसी तरह की किसी नई पोस्ट के साथ वापस लौटेंगे ।

धन्यवाद ।

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